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नए कानून पर बल देने वाले मानव तस्‍करी से बचाए गए लोगों का कहना है कि यौन कर्मियों की आशंकाएं निराधार

by Anuradha Nagaraj and Roli Srivastava | @Rolionaroll | Thomson Reuters Foundation
Monday, 16 July 2018 13:36 GMT

ARCHIVE PHOTO: Shashi Tharoor, a Member of Parliament from India's main opposition Congress party, poses after an interview with Thomson Reuters Foundation at his office in New Delhi, India, January 25, 2016. REUTERS/Anindito Mukherjee

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  • अनुराधा नागराज और रोली श्रीवास्तव

    चेन्नई / मुंबई, 16 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - मानव तस्करी से बचाए गए लोग भारतीय सांसदों से इस अपराध से निपटने के प्रस्तावित कानून का समर्थन करने का आग्रह कर रहे हैं। उनकी यह अपील एक विपक्षी नेता की उस टिप्‍पणी के बाद आई है कि नए कानून का इस्तेमाल अपनी मर्जी से देह व्‍यापार में लिप्‍त वयस्कों को निशाना बनाने में किया जा सकता है।

      कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरूर ने इस सप्‍ताह शुरू होने वाले संसद सत्र में इस विधेयक को पेश करने से पहले इस पर और विचार-विमर्श करने को कहा है।

      उन्होंने हजारों यौन कर्मियों, सैकड़ों कार्यकर्ताओं और 30 सीविल सोसायटी समूहों द्वारा अनुमोदित याचिका में उठायी गयी आंशकाओं को महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के समक्ष रखा।

    मानव तस्करी से बचाए गए लोगों और कार्यकर्ताओं ने उस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मसौदा कानून पीड़ितों पर केंद्रित है और अगर यौन कर्मी दूसरों से जबरन यह कार्य नहीं करवाते हैं तो इस कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी।

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि वर्षों विचार-विमर्श करने के बाद विधेयक‍ का मसौदा तैयार किया गया है।

     किशोर आयु में तस्करी की गई 23 वर्षीय एक लड़की ने कहा, "हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इस कानून को पारित करने में देरी ना करे।  

      इस कानून का समर्थन करने वाले तस्‍करी से बचाए गए लोगों के संगठन उत्‍थान के एक बयान में उसने कहा, "हमारा जीवन इस कानून पर निर्भर है और अपनी मर्जी से देह व्‍यापार करने वाले वयस्क यौन कर्मियों की मांगों की वजह से हमें मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता है।"

     थरूर की याचिका सरकार द्वारा विधेयक का पहला मसौदा जारी करने के दो साल बाद आयी है, इस दौरान विधेयक पर विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श किया गया और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिक्रियाएं ली गई थीं।

     इस विधेयक पर पिछले संसद सत्र के दौरान मार्च में चर्चा होनी थी, लेकिन इसे सदन पटल पर नहीं रखा जा सका था। इसमें और देरी होने की आशंका है, क्‍योंकि 2019 में होने वाले आम चुनाव के कारण सांसदों का ध्यान इससे हट सकता है।

     थरूर की याचिका में कहा गया है कि इस विधेयक के तहत होने वाली कार्रवाई में तस्करी पीड़ितों के साथ ही अपनी मर्जी से देह व्‍यापार करने वाले वयस्कों को भी जबरन वेश्‍यालयों से बचाए जाने का खतरा हो सकता है।

     मानव तस्‍करी रोधी अभियान चलाने वाली सुनीता कृष्णन ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि ऐसी आशंकाएं बेबुनियाद हैं।

      उन्होंने कहा, "उन्‍हें वयस्‍क यौन कर्मियों की आजीविका प्रभावित होने की आशंका है। अगर किसी वेश्‍यालय में तस्‍करी पीड़ित हैं तो कार्रवाई का असर पड़ेगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो उनके काम पर कोई प्रभाव क्‍यों पड़ेगा?"

      याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित कानून में तस्करी की जांच करने और तस्‍करों के विरूद्ध मुकदमा चलाने के अधिक प्रावधान होने चाहिए।

     कार्यकर्ताओं ने बताया कि कानून के अंतर्गत तस्करों को 10 साल तक जेल की सजा दी जा सकती है या आजीवन कारावास में भेजा जा सकता है। उनका कहना है कि इसमें तस्‍करी से बचाए गए लोगों की जरूरतों को भी प्राथमिकता दी गई है तथा वेश्यालयों में छापे के दौरान वहां पायी गयी महिलाओं और लड़कियों जैसे पीड़ितों को जेल नहीं भेजने के प्रावधान हैं।

     कृष्णन की याचिका पर उच्‍चतम न्‍यायालय ने 2015 में सरकार को तस्करी से निपटने के लिए पीड़ित केंद्रित कानून का मसौदा तैयार करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि वर्तमान विधेयक का प्रभाव बेमिसाल है।

     उन्होंने कहा, "पहली बार भारत सरकार मानव तस्करी को संगठित अपराध मान रही है, इस विधेयक में इस अपराध से निपटने के लिए बजट है और राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर इसका मुकाबला करने की व्‍यवस्‍था है। 

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

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