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मुंबई पुलिस को गुर्दा प्रत्यारोपण के गोरखधंधे में अंगों के लिए गरीबों को निशाना बनाने का संदेह

by - रीना चंद्रन | @rinachandran | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 19 July 2016 11:47 GMT

A homeless girl, covered with a blanket, sleeps on a road divider along a street in Mumbai in this 2011 file photo. REUTERS/Danish Siddiqui

Image Caption and Rights Information

-          रीना चंद्रन

     मुंबई, 19 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – एक प्रमुख अस्पताल में अवैध गुर्दा प्रत्यारोपण के मामले में मुंबई पुलिस का संदेह एक आपराधिक गिरोह पर है जो गरीब लोगों को निशाना बनाता है। यह देश में अंगों की कमी के कारण इनकी बढ़ती काला बाजारी का हाल ही में हुआ मामला है।

  देश की वित्तीय राजधानी के उपनगर में स्थित हीरानंदानी अस्पताल ने पिछले सप्ताह अंगदाता के कागजात फर्जी होने की खुफिया सूचना मिलने के बाद एक गुर्दा प्रत्यारोपण रोक दिया।

  हीरानंदानी अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुजीत चटर्जी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का हमें मोहरा बनाया गया है।"

    इस मामले में अस्पताल के एक कर्मचारी और छह अन्य लोगों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने इस अस्पताल में पहले कराये गये प्रत्यारोपण के मामलों की तफ्तीश शुरू कर दी है।

   एक पुलिस प्रवक्ता ने बताया, "हम एक आपराधिक गिरोह की जांच कर रहे हैं, जो गरीब लोगों को निशाना बनाता है और फर्जी कागजात तैयार करके उन्हें मरीज के रिश्तेदार बता कर अस्पतालों में ले जाता है।"

    भारत में अंगों का व्यापार गैर कानूनी है और आवश्‍यक होने पर मरीज का करीबी रिश्तेदार ही अंग दान कर सकता है। प्रत्येक अस्पताल में मौजूद विशेष समिति से अंगदान की मंजूरी लेना जरूरी होता है, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता और राज्‍य के अधिकारी शामिल होते हैं।

  अंग दान पर कार्य करने वाले एक गैर सरकारी समूह- मोहन फाउंडेशन के अनुसार, भारत में दो लाख से अधिक लोगों को हर साल एक नए गुर्दे और लगभग एक लाख लोगों को नये जिगर (लिवर) की जरूरत पड़ती है।

  लेकिन मुख्‍यरूप से अनभिज्ञता और सांस्कृतिक संकोच के चलते कानूनी तौर पर अंग दान काफी कम होता है, जिससे कारण अंगो की मांग की केवल 2 से 3 प्रतिशत पूर्ति हो पाती है।

    अंगों की अत्‍यधिक कमी के कारण अवैध प्रत्यारोपण की काला बाजारी और अंगों की तस्करी बढ़ी है, क्‍योंकि निराश मरीज अक्सर बिचौलियों की ओर रूख करते हैं और एक गुर्दे के लिए 10 लाख रुपये या इससे अधिक कीमत चुकाने को राजी हो जाते हैं।

    संभावित अंग दान करने वालों की तलाश में ये बिचौलिये अक्सर गांवों और छोटे कस्‍बों में जाते हैं और वहां लोगों को शहर में नौकरी दिलाने का झांसा देते हैं।

    गुर्दा देने वाले ज्‍यादातर लोग गरीब और अनपढ़ होते हैं और इसके लिये उन्‍हें बहुत कम पैसा मिलता है तथा बाकी पैसा बिचौलिये की जेब में चला जाता है।

     हीरानंदानी अस्पताल के चटर्जी ने कहा, "हम डॉक्टर हैं। हम फर्जी दस्तावेजों और धोखाधड़ी का पता नहीं लगा पाते हैं।" उनका कहना है कि अस्पताल पुलिस के साथ सहयोग और प्रत्यारोपण की अपनी प्रक्रियाओं की समीक्षा कर रहा है।

    पिछले महीने नई दिल्ली के एक अस्पताल ने कहा था कि पीडि़तों के गुर्दे निकालने के लिये तस्‍करों ने उन्‍हें जरूरतमंद मरीजों के रिश्तेदार होने का झांसा दिया था।

     हाल के वर्षों के अन्य मामलों में अवैध प्रत्यारोपण के लिए भारत आने वाले विदेशी शामिल हैं और नेपाल से अंगदान के लिये पुरुषों की तस्करी की जा रही है।

  मोहन फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध न्यासी सुनील श्रॉफ ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है और अंगों की इस भारी कमी को दूर किये बिना इससे निजात नहीं मिल सकती।"

  उन्होंने कहा, "हमें जागरूकता फैलाने और अधिक अंगदान के लिये लोगों को प्रोत्साहित करने की आवश्‍यकता है। इस समस्‍या से निपटने का यही एकमात्र तरीका है।"

 (रिपोर्टिंग- रीना चंद्रन, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

 

 

 

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