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कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश का पहला मानव तस्करी रोधी मसौदा कानून कारगर नहीं

by रीना चंद्रन | @rinachandran | Thomson Reuters Foundation
Monday, 4 July 2016 12:29 GMT

Labourers carry bricks to be baked in a kiln at a brickyard on the outskirts of Karad in Satara district, about 396km (246 miles) south of Mumbai February 13, 2012. REUTERS/Danish Siddiqui

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     मुंबई, 4 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – धर्मार्थ संस्‍थाओं और कार्यकर्ताओं ने देश के पहले मानव तस्करी रोधी कानून के मसौदे की आलोचना करते हुये कहा है कि प्रस्तावित कानून में कई खामियां है और यह तेजी से बढ़ते इस अपराध के सभी पहलुओं से निपटने में कारगर नहीं है।

   मई में जारी किये गये मानव तस्‍करी रोधी मसौदा विधेयक में देश के मौजूदा तस्‍करी रोधी कानूनों को एकजुट किया गया और बचाये गये लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता देने तथा तस्करी के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिये विशेष अदालतों का प्रावधान है।

  मसौदा विधेयक पर पिछले सप्ताह समाप्त हुये विचार-विमर्श में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के हिमायतियों ने कई संशोधन की मांग की है।

  मुंबई के टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर और मानव तस्करी विषय के जानकार पी.एम. नायर ने कहा, "नए कानून से जमीनी स्‍तर पर काम करने वाले लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा होगी, क्योंकि इसमें तस्करी संबंधित सभी अपराधों की सूची नहीं है और मौजूदा कानूनों को भी शामिल नहीं किया गया है।"

  उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मौजूदा रूप में विधेयक एक आपदा है। इसके मसौदे को दोबारा तैयार करने की जरूरत है।"

  संयुक्त राष्ट्र नशीली दवा और अपराध कार्यालय के अनुसार दक्षिण एशिया में मानव तस्करी सबसे तेजी से बढ़ रही है और विश्‍व में पूर्व एशिया के बाद यह मानव तस्‍करी का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है, जिसका केंद्र भारत है।

  दक्षिण एशिया में तस्करी किये जा रहे लोगों की संख्या के बारे में सही आंकड़े उपलब्‍ध नहीं हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि अधिकतर भारत और उसके गरीब पड़ोसी देश नेपाल तथा बांग्लादेश से हजारों महिलाओं और बच्चों की तस्करी की जाती है।

  इनमें से कईयों को जबरन शादी करवाने या खेतों, कारखानों, ईट भट्ठों और मध्यम वर्गीय घरों में बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करने के लिये बेच दिया जाता है अथवा वेश्यालयों में भेज दिया जाता है।

   राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार  2014 में मानव तस्करी के 5,466 मामले दर्ज किए गए थे, जो पिछले पांच वर्षों में 90 प्रतिशत बढ़ गया है। हालांकि  कार्यकर्ताओं का कहना है इस समस्या का अनुपात अनुमान से अधिक है।

  महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को लिखे पत्र में नेशनल कोएलिशन टू प्रोटेक्‍ट अवर चिल्‍ड्रन (एनसीपीओसी) ने कहा है कि इस विधेयक में "तस्करी" और "यौन शोषण" को परिभाषित नहीं किया गया है, और यह कानून अपराध की रोकथाम या बचाये गये लोगों का पुनर्वास सुनिश्चित करने में ज्‍यादा कारगर नहीं होगा।

  इस पत्र में कहा गया कि, "विधेयक के मौजूदा स्वरूप में तस्करी के अपराध का निवारण संभव नहीं है।"

  मानवाधिकार समूह- अंतरराष्ट्रीय न्याय मिशन ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि मसौदा विधेयक में बंधुआ मजदूरी को तस्करी के रूप में शामिल नहीं किया गया है और 2006 से इस अपराध से निपटने के लिए देशभर में स्‍थापित मानव तस्‍करी रोधी इकाइयों की महत्वपूर्ण भूमिका की अनदेखी की गई है।

  अंतरराष्ट्रीय न्याय मिशन का कहना है कि नए कानून को कारगर बनाने के लिए इसका समन्वय मौजूदा कानूनों जैसे अनैतिक तस्‍करी रोकथाम अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम और यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के साथ होना चाहिए।

  इस विधेयक पर प्रतिक्रिया लेने की अंतिम तिथी 30 जून थी, हालांकि कुछ कार्यकर्ताओं ने इसे आगे बढ़ाने का आग्रह किया है। अब इस विधेयक को सरकारी मंत्रालयों की सिफारिशों के लिए उनके पास भेजा जायेगा।

  गांधी का कहना है कि अंतिम विधेयक को इस वर्ष के अंत तक संसद में पेश किया जा सकता है।

 (रिपोर्टिंग-रीना चंद्रन, संपादन-रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org) 

 

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